लखनऊ के कैसरबाग स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में नवोन्मेष द्वारा ‘ओ री चिरैय्या’ नाटक का मंचन किया गया. ‘ओ री चिरैय्या’ का मंचन यूथ ड्रामा फेस्टिवल के अंतर्गत दिनांक 21 सितम्बर को किया गया. नाटक पंकज सुबीर की मूल कहानी दो एकांत से प्रेरित है जिसका लेखन एवं निर्देशन नवोन्मेष अध्यक्ष विजित सिंह द्वारा किया गया है.
पात्र परिचय:
बाबा: विजित सिंह
बाबा का दोस्त: मंज़र अब्बास रिज़वी
पोता: धीरज गुप्ता
नाटक के बारे में:
ओ री चिरैय्या एक स्त्रीविहीन समाज की कल्पना का मंचन है. नाटक के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है कि वर्तमान में हो रहे भ्रूण हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा एवं महिलाओं के साथ हो रहे शोषण को यदि अभी नहीं रोका गया तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे आँगन की चिरैय्या (लडकियाँ) चली जाएँगी हमेशा के लिए हमारे समाज को सूना करके. नाटक तीन पुरुष पात्रों के ईर्द-गिर्द घूमता है : बाबा, पोता एवं बाबा का दोस्त. समाज पूरी तरह से स्त्रीविहीन है इसलिए बाबा के पोते ने आजतक अपने 25 वर्ष की आयु में लड़की या औरत देखी तक नहीं है. पोता रोज-रोज बाबा से लड़कियों को देखने का काल्पनिक दावा करता है और बाबा उसकी इस बेबुनियादी कल्पनाशीलता पर ठहाके लगाकर हँसता है. एक दिन पोता बाबा से अपनी माँ के बारे में जानने की जिद करने लगता है. बाबा और बाबा का दोस्त पोते की जिद के आगे बेबस हो जाते हैं और आखिरकार पोते को बताते हैं कि महिलाओं के अभाव में उसके पिता जी की शादी हो पाना संभव नहीं था इसलिए उसको पैदा करने के लिए किसी महिला को साल भर के लिए किराए पर लाया गया था जो उसको पैदा कर चली गई थी किसी और के घर बच्चा पैदा करने. यही से बाबा और उसका दोस्त, पोते को स्त्रीविहीन समाज का आइना दिखाना शुरू करते हैं, और हर उस राज से पर्दा उठाते हैं जिसके कारण धीमे-धीमे हमारा समाज स्त्रीविहीन हुआ. आखिर में बाबा पोते के लिए भी किसी औरत को साल भर के लिए किराए पर लाने का प्रयत्न करता है लेकिन पता चलता है कि बची हुई इकलौती महिला भी पिछले हफ्ते मर गयी…..आगे क्या होता है इसके लिए आपको नाटक की ओर रुख करना होगा.