विषय: जिला कारागार में नवोन्मेष द्वारा प्रशिक्षित कैदियों द्वारा मंचित ‘नाटक ठहरा हुआ’ पानी के सन्दर्भ में
नाटक ‘ठहरा हुआ पानी’ हेतु कैदियों को विगत ढाई माह से प्रशिक्षित किया जा रहा था. यह नाटक आधारित है जेल में जीवन काट रहे कैदियों की ज़िन्दगी पर. नाटक में बताया गया है कि गलत संगत, विपरीत परिस्थियों या फिर आवेश में आकर हम कुछ गलत बैठते हैं जिसके कारण जेल आना पड़ता है लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि जेल आने के उपरान्त जीवन समाप्त हो जाता है. जेल के भीतर रहकर भी अपने सकारात्मक कार्यों से हम अपनी विशेष पहचान बना सकते है.
नाटक शुरू होता है बैरक नंबर 7 के खुशमिजाज़ और जिंदादिल कैदियों के बिंदास अंदाज़ से. इस बैरेक की विशेष बात ये है कि अलग-अलग देश/ धर्म/ समुदाय से होने के बावजूद सब मिलजुल कर रहते हैं और हर पल पूरी मस्ती के साथ जीते हैं. एक दिन अचानक उनके बैरेक में दुसरे बैरक से स्थानांतरित होकर रब्तु नाम का कैदी आता है. रब्तु को अदालत द्वारा फांसी की सजा सुना दी गयी है जिसके कारण वो पूर्व में आत्महत्या का असफल प्रयास कर चुका है. रब्तु भविष्य में पुनः आत्महत्या का प्रयत्न न करे इसलिए उसे बैरेक नंबर सात में भेजा जाता है. रब्तु के बैरक में आते ही बैरेक नंबर सात के सभी कैदी उसे हंसाने में जुट जाते हैं लेकिन रब्तु फिर भी नहीं हँसता. जब बैरेक के लोगो को रब्तु के जेल आने का कारण पता चलता है तो सभी भावुक हो जाते हैं. यहाँ से शुरू होती है उस बैरक के हर एक किरदार के जेल आने की कहानी. कोई गलत तरीके से बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करके आया है तो किसी ने प्रतिशोध में आकर गुनाह को अंजाम दिया. कुछ ऐसे भी कैदी है उस बैरक में जिन्हें बिना गुनाह के सजा भुगतनी पड़ रही है.
मंच परे
मंच सज्जा: धीरज गुप्ता पात्र सज्जा : मुनीश ग्यानी सहयोगी : राजेंद्र प्रसाद
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लेखक: कुश वैष्णव
परिकल्पना एवं निर्देशन: विजित सिंह |
नाटक के अंत में विजय बाबू नामक मानवाधिकार कार्यकर्ता के अथक प्रयास से सर्वोच्च न्यायलय द्वारा रब्तू की फांसी रोक दी जाती है. उसी बैरक में ‘चाचा’ नाम से प्रचलित कैदी को उसके अच्छे चाल चलन की वजह से 26 जनवरी को रिहा कर दिया जाता है. चाचा जाते समय सभी कैदियों को शपथ दिलाता है कि “हम आज के बाद कोई भी ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे मानवता शर्मसार हो, हम सभी समाज के हित में काम करेंगे जिससे इंसानियत गौरवान्वित हो सके”
मंच पर
मानवाधिकार कार्यकर्ता: जय प्रकाश राजभर जेलर : नीरज कुमार तिवारी सिपाही/ रसोइया : श्रवण कुमार उस्ताद जी : राहुल रस्तोगी हरिराम : रुपेश त्रिपाठी रब्तू : रमेश यादव चाचा : दिनेश पाण्डेय कविराज : चन्द्र प्रकाश पाण्डेय दुआ सलाम : अमीरुल्लाह ढाका : सद्दाम हुसैन अंगूठा : औरंगज़ेब |
विशेष सहयोग
डा.सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय : जिलाधिकारी श्री पी.के.जैन : अपर जिलाधिकारी श्री बी.के.गौतम : कारापाल, कारागार सिद्धार्थनगर
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